आगरा.
ट्यूबरक्लोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया की डिपार्टमेंट ऑफ ट्यूबरक्लोसिस एंड रेस्पीरेटरी डिजीज, एसएन मेडिकल कॉलेज व यूपी टीबी एसोसिएशन एंड द यूनियन साउथ ईस्ट एशिया रीजन के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय नेटकॉन-2022 में दूसरे दिन मंगलवार को टीबी और फेंफड़ों की बीमारियों पर चर्चा की गई. जिसमें विशेषज्ञों ने बताया कि, आज टीबी के 40 प्रतिशत मरीजों में लक्षण नहीं होते हैं. सिर्फ 63 प्रतिशत में लक्षण होते हैं. लेकिन, ऐसे मरीज इलाज के लिए डॉक्टर्स के पास नहीं जाते हैं. जब मर्ज बढ़ता है. तो उपचार कराने पहुंचते हैं. ऐसे टीबी के संदिग्ध मरीजों की स्क्रीनिंग होनी चाहिए. ऐसे ग्रुप जिनमें टीबी के संक्रमण का खतरा है. वहां, टीबी स्क्रीनिंग चल रही है.
चेयरमैन ऑफ नेशनल टास्क फोर्स ऑफ मेडिकल कॉलेजेज नेशनल टीबी एल्मिनेशन प्रोग्राम डॉ. एके भारद्वाज ने बताया कि, देश में 63 प्रतिशत मरीज इलाज कराने नहीं आ रहे हैं. जबकि, टीबी के 40 प्रतिशत मरीजों में कोई लक्षण नहीं होते हैं. इसलिए, वे भी इलाज नहीं करा रहे हैं. देश में 650 मेडिकल कालेज हैं. इसमें से 579 मेडिकल कॉलेज टीबी के मरीजों की जांच और इलाज का काम सक्रियता से कर रहे हैं. मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (MDR) मरीजों का इलाज भी मेडिकल कालेजों में ही किया जा रहा है. 10 वर्ष पूर्व MDR के मरीजों का इलाज 22 महीने चलता था. जिसका 22 लाख का खर्चा आता था. इन मरीजों को इंजेक्शन भी लगवाने पड़ते थे. लेकिन, अब ऐसा नहीं है.11 से 18 महीने इलाज चल रहा है. जिससे अब खर्चा 10 लाख रुपये आता है. लेकिन, मरीजों का इलाज पहले और अब भी पूरी तरह से निशुल्क है.
एक्टेंड ड्रग रजिस्टेंट टीबी के मरीज बढ़े
चेयरमैन ऑफ नेशनल टास्क फोर्स ऑफ मेडिकल कॉलेजेज नेशनल टीबी एल्मिनेशन प्रोग्राम डॉ. एके भारद्वाज ने बताया कि, टीबी के मरीजों को दी जा रहीं दवाओं के असर को देखने के लिए यूनिवर्सल ड्रग ससेप्टिबिलिटी टेस्टिंग ( यूडीएसटी) की जा रही है. इससे इलाज करने में मदद मिल रही है. मरीज पूरी दवा नहीं लेते हैं. इसलिए, एमडीआर और एक्टेंड ड्रग रजिस्टेंट (एक्सडीआर) टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ी है. देश में 1.35 लाख एमडीआर के मरीज हैं. इतना ही नहीं, एचआईवी के मरीजों में टीबी की आशंका 60 गुना तक ज्यादा हो जाती है. दो सप्ताह तक खांसी और बुखार है वजन कम हो रहा है तो तत्काल टीबी की जांच करा लेनी चाहिए.
कोविड के बाद बढ़ी ILD के मरीजों की संख्या
सरदार वल्लभ भाई पटेल हॉस्पिटल जयपुर के डॉ. विक्रम कुमार जैन ने बताया कि, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज, आईएलडी की समस्या भी बढ़ रही है. एलर्जी के कारण इस तरह की समस्याएं बढ़ीं हैं. कोविड के बाद से आईएलडी के मरीज अधिक मिल रहे हैं. इसमें मरीजों को सूखी खांसी आती है. बस और ऑटो से बच्चे स्कूल जा रहे हैं. इसके लिए ड्राइवरों की स्क्रीनिंग की जानी चाहिए. इनमें भी टीबी की आशंका अधिक रहती है.