नई दिल्ली.
आज डॉक्टर्स डे है. आज mobycapsule.com उन चिकित्सकों की कहानी लेकर आया है. जिन्होंने विपरीत परिस्थिति में काम किया. संघर्ष किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई. इस खबर में एम्स के दो डॉक्टर्स के संघर्ष की कहानी है. इनमें एक ने पढ़ाई करने के लिए बचपन में सब्जी बेची, मजदूरी की, सीमेंट के कट्टे और भट्टे से ईंटें ढोईं. इतना ही नहीं बचपन में ही कक्षा नौ में ही विवाह होने पर भी अपना डॉक्टर बनने का सपना नहीं छोडा. तो दूसरा भी बिहार का एक किसान का बेटा है. जिससे एमबीबीएस की फीस भी कर्जा लेकर भरी थी.
नौंवी क्लास में ही हो गई थी शादी
पहली कहानी डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति की है. जिन्होंने अभावों में रहकर पढ़ाई की. और अब देश के सर्वश्रेष्ठ मेडिकल कॉलेजों में नए डॉक्टर्स तैयार कर रहे हैं. डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले के गांव भीमसागर में हुआ था. वे अपने भाई- बहनों में वे सबसे छोटे हैं. पिता किसान हैं. इसलिए घर का खर्च चलाना आसान नहीं था. डॉ. ओमप्रकाश प्रजापित बताते हैं कि, मेरी नौंवी क्लास में ही शादी हो गई थी. पत्नी वर्ष 2010 में उनके साथ रहने आईं. मैं अपना खर्च चलाने के लिए पास के कस्बे लोहावट में आइसक्रीम बेचता था. ट्रेनों में चाय और बिस्कुट भी बेचे. कक्षा 12 के दौरान कुछ दिन सब्जियों का ठेला भी लगाया.
देश के नामी किडनी प्रत्यारोपण सर्जन
डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति बताते हैं कि, मैं पहले आईएएस बनना चाहता था. जोधपुर में ही बीएससी में दाखिला लिया. मगर, बीएससी की परीक्षा से एक दिन पहले डॉक्टर बनने का निर्णय लिया. यह डॉक्टर्स को सेवा करते देखकर मेरा ख्याल डॉक्टर बनने का हुआ तो पीएमटी परीक्षा की तैयारी की. जिससे पुणे के सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया. मेरे पास फीस भरने के पैसे नहीं थे, तो कई लोगों ने मदद मांगी. मगर, अधिकतर ने इनकार कर दिया था. लेकिन, तब कालूराम प्रजापति ने उनकी पांच साल एमबीबीएस की फीस दी. यहां से पीजीआई चंडीगढ़ गए और वहां पर एमएस सर्जरी पास की. डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति बताते हैं कि, मैंने इसके बाद एम्स में बतौर सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर काम शुरू किया. अब वहीं पर एसोसिएट प्रोफेसर हूं. मैं किडनी प्रत्यारोपण सर्जन हूं. अब जब भी कोई गांव से दिल्ली आता है. वह गरीब है तो उसके दिल्ली में रुकने का इंतजाम में करता हूं.
उधारी से भरी एमबीबीएस की फीस, अब कर रहे डीएम
दूसरी कहानी एम्स के मनोचिकित्सा विभाग में तैनात डॉ. रविकांत कुमार की है. जो बेहद संघर्ष भरी है. मूलत बिहार के नालंदा जिले के गांव बाराह निवासी डॉ. रविकांत कुमार ने बिना कोचिंग किए एम्स में डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया है. डॉ. रविकांत कुमार बताते हैं कि, एक वक्त ऐसा था, जब एमबीबीएस की आठ हजार रुपए की फीस जमा कराने का इंतजाम नहीं था. तब एमबीबीएस छोड़ने की सोची थी. संघर्ष और लगन देखकर जानने वालों ने रुपए उधार दिए तो पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज में फीस जमा कराई थी. किसान के बेटा रविकांत कुमार आज एम्स दिल्ली में मनोचिकित्सा विभाग में डीएम कर रहे हैं.