गोरखपुर (उत्तर प्रदेश): यूपी में जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis ) यानी जेई के खिलाफ जंग चीन का बना टीका कमजोर कर रहा है. क्योंकि, चीनी टीका लगाने के बाद भी मासूमों में एंटीबॉडी (Antibodies) पर्याप्त नहीं बन रही है. आरएमआरसी (Regional Medical Research Center), आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research) और सीएमसी (Christian Medical College) वेल्लोर के साझा शोध (Research) में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.
जापानी इंसेफेलाइटिस क्या है ?
जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस या एलर्जी एक मच्छर जनित फ्लेवीवायरस है. जो मच्छरों के काटने से फैलता है. इसके चपेट में आने के बाद मरीज के ब्रेन में सूज जाता है, जिससे मौत का जोखिम बहुत बढ़ जाता है. इसे जापानी इंसेफेलाइटिस इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि सन 1871 में पहली बार इस वायरस का मामला जापान में दर्ज किया गया था.
जापानी इंसेफेलाइटिस कैसे फैलता है ?
जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई) वायरस, एक फ्लेविवायरस, वेस्ट नाइल और सेंट लुइस एन्सेफलाइटिस वायरस से निकटता से संबंधित है. जेई वायरस संक्रमित क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छरों, विशेष रूप से क्यूलेक्स ट्राइटेनियोरहाइन्चस के काटने से मनुष्यों में फैलता है. इस बुखार का पता मच्छर के काटने के 5 से 15 दिनों में दिखाई देता है.
जापानी बुखार के लक्षण
- तेज बुखार आता है।
- गर्दन में अकड़न होती है।
- सिरदर्द होता है।
- बुखार आने पर घबराहट होती है।
- ठंड के साथ-साथ कंपकंपी आती है।
- कभी-कभी मरीज कोमा में भी चला जाता है।
पूर्वी यूपी के 266 बच्चों पर रिसर्च
बता दें कि, पूर्वी यूपी के 266 बच्चों पर रिसर्च की गई है. इन बच्चों की उम्र 10 साल है. इन बच्चों को दो साल की उम्र के अंतर के हिसाब से पांच श्रेणियों में बांट कर रिसर्च की गई.इसका रिसर्च पेपर जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन में प्रकाशित हो चुका है. रिसर्च के बाद रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (RMRC) ने बच्चों को बूस्टर डोज की सिफारिश की है.
बच्चों आईजीजी की मात्रा मानक से कम
RMRC के निदेशक डॉ रजनीकांत बताते हैं कि, बच्चों को अलग-अलग समय पर टीका लगाया गया था. बच्चों में एंटीबॉडी की जांच के लिए सबसे पहले उनके ब्लड के सैंपल में आईजीजी की जांच की गई. जिसमें सभी उम्र वर्ग के बच्चों की जांच रिपोर्ट में आईजीजी की मात्रा मानक से काफी कम मिली. चीनी वैक्सीन (एसए-14-14-2) का असर उन बच्चों में भी कम मिला. जिन्हें कुछ समय पहले ही टीका लगा था. इसका तात्कालिक असर जांचने के लिए दो साल तक के बच्चों को रिसर्च में शामिल किया गया था. इन बच्चों में एंटीबॉडी रिस्पांस करने वाली ज्योमैट्रिक मीन टाइटर का स्तर भी कम मिला. रिसर्च में करीब 98 बच्चों में आईजीजी की मात्रा मानक से कम मिली.
अब लग रहा नया टीका
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) का बनाया गया नया टीका अब जेई से बचाव के लिए बच्चों को लग रहा है. इस टीका का नाम जेनवैक हैं. इसका उत्पादन भारत बायोटेक कर रहा है. इस टीके की खासियत यह है कि, यह टीका लिक्विड स्वरूप में है. इसके साथ ही ज्यादा असरदार है. टीके के प्रत्येक वॉयल में पांच डोज उपलब्ध है. इसके साथ ही अब नौ महीने और डेढ़ साल के बच्चों को जेई का नया टीका ही लगाया जा रहा है.
वर्ष 2011 से लगाया जा रहा है चीन का टीका
पूर्वी यूपी में जापानी इंसेफेलाइटिस से बचाव के लिए पहली बार टीका 2005 में लगाया गया था. तब शुरुआत में जापान से टीके का आयात किया गया. तब उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में ही यह टीका लगाया गया था. सन 2011 से इसे देश में 13 राज्यों के 181 जिलों में नियमित टीकाकरण में शामिल किया गया. वर्ष 2011 में इसकी सिंगल डोज लगती थी. लेकिन. वर्ष 2013 से चीन के टीके की दो डोज बच्चों को लगाई जा रही हैं. पहली डोज नौ महीने पर और दूसरी डोज डेढ़ साल पर लगाई जाती है.
टीके के बाद भी खतरा
RMRC के निदेशक डॉ रजनीकांत बताते हैं कि, एंटीबॉडी कमजोर होने का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि. टीका लगने के बावजूद बच्चे जेई से संक्रमित हो सकते हैं. इस रिसर्च में टी-सेल को शामिल नहीं किया गया है. यह सेल संक्रमण होने पर वायरस को निष्क्रिय करता है. इस पर भी भविष्य में रिसर्च होगा.
Disclaimer: The tips and suggestions in the story are for general information only. Do not take these as advice from any doctor or medical professional. In case of symptoms of illness or infection, consult a doctor.