नई दिल्ली.
अमेरिका में लागू किए गए अबॉर्शन कानून को लेकर हैश टैग “अबॉर्शन बैन” ट्विटर पर खूब ट्रेेंड कर रहा है. लोग अमेरिका की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस पर खूब राजनीति हो रही है. सवाल दमदार है कि, इस कानून से अमेरिका की 16.75 करोड़ महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन है. जबकि, भारत में गर्भपात का काननू बहुत बेहतर है. यहां पर महिलाओं को ही गर्भपात कराने की पूरी छूट है.
13 राज्यों में कानून पारित, US राष्ट्रपति कर रहे विरोध
दरअसल, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन बैन को कानूनी तौर पर मंजूरी दी है. इसके बाद अब अबॉर्शन का हक कानूनी रहेगा या नहीं. इस पर राज्य अपना अलग नियम बना सकते हैं. अमेरिका में 13 राज्य पहले ही यह कानून पारित कर चुके हैं. अब 50 साल पुराने ‘रो बनाम वेड’ मामले में फैसले के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे हैं. गर्भपात के पारित नए कानून को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन देश की महिलाओं के साथ हैं. उनका कहना है कि, वे देश की महिलाओं के हक की सुरक्षा के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे. यह महिला और उसके डॉक्टर के बीच के मामला है.
अमेरिका में अबॉर्शन बैन लॉ को मंजूरी पर भारत के एक्सपर्ट्स का कहना है कि, भारत में अमेरिका से ज्यादा मानवीय गर्भपात की व्यवस्था है. भले ही भारत में गर्भपात करना गैरकानूनी है. लेकिन, विशेष परिस्थिति के लिए कोर्ट की इजाजत से ही अबॉर्शन कराया जाता है. अबॉर्शन पर रोक लगाना किसी गंभीर स्थिति में महिलाओं की सेहत के साथ खिलवाड़ है.
अबॉर्शन हो, एब्नॉर्मल बेबी या बेटियां, बस भेंट चढ़ती हैं महिलाएं
ऐसा कई बार देखने को मिला है कि, महिलाओं की सेहत से जुड़े फैसले भी पुरुष लेते हैं. अमेरिका का अबॉर्शन का फैसला भी इनमें से एक है. यह फैसला महिलाओं की जान को जोखिम में डालना है. कई बार परिवार के वारिस की चाहत में महिलाएं अपनी जान की परवाह किए बच्चा पैदा करती हैं. जिसमें उनकी जान तक चली जाती हैं. कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं कि, जिसमें बच्चा एब्नॉर्मल पैदा हुआ तो मां को ही दोषी ठहराया गया. भारत में आज भी गर्भ में लड़के न होने पर अबॉर्शन कराया जाता है. जो गैरकानूनी है.
भारत में बढ़ी गर्भपात कराने की अवधि
अमेरिका के मुकाबले भारत में 25 मार्च 2021 में गर्भपात कानून 1971 में संसोधन किया गया. जिसमें रेप और व्यभिचार जैसे केस में अबॉर्शन कराने की सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते की गई है. हालांकि, इसके लिए दो डॉक्टरों की मंजूरी की जरूरी है.
क्या था ‘रो बनाम वेड’मामला
1971 में गर्भपात कराने में नाकाम रही एक महिला की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. जिसे ही ‘रो बनाम वेड’ मामला कहते हैं. इस मामले में सन 1973 में कोर्ट ने गर्भपात को कानूनी करार दिया था. संविधान भी गर्भवती को गर्भपात से जुड़ा फ़ैसला लेने का हक़ देता है.