नई दिल्ली.
भारत में हर सातवां व्यक्ति मनोरोगी है. यह हम नहीं आंकड़े बयां कर रहे हैं. मगर, भारत में मानसिक रोगों के बारे में जन जागरूकता का अभाव है. इसकी वजह से अधिकतर मनोरोगी का पता नहीं हो पाता है. यही वजह है कि, मानसिक रोगों से पीड़ित गंभीर लक्षण वाले 42 फीसदी मरीज इलाज के लिए पहली बार में बाबा, मोटिवेशनल गुरु और पुजारियों के पास जाते हैं. जहां भूत प्रेत का साया बताकर उनका इलाज किया जाता है. यह खुलासा दिल्ली एम्स में एक रिसर्च हुआ है.

दिल्ली एम्स के रिसर्चर का दावा है कि, 14 फीसदी मानसिक रोगी ही मनोचिकित्सक के पास पहुंचते हैं. यह रिसर्च इंडियन जर्नल ऑफ सोशल साईकेट्री में प्रकाशित हुई है.
झाड़ फूंक से लक्षण बढ़ गए
रिसर्चर बताते हैं कि, मुरादाबाद निवासी 37 वर्षीय अंजली स्किजोफ्रीनिया से पीड़ित हैं. उसका एम्स में इलाज चल रहा है. अंजली को अजीब आवाजें सुनाई देती थीं. उसे ऐसा लगता था कि, कोई उन्हें कमांड दे रहा है. एक बाबा ने उनका झाड़ फूंक करके उपचार करने का दावा किया. लेकिन, अंजली के लक्षण बढ़े तो परिजन उसे एम्स लेकर आए. उसकी हालत गंभीर होने पर भर्ती करके उपचार किया जा रहा है.
28 फीसदी आयुर्वेदिक डॉक्टरों के पास पहु्ंचते
एम्स की रिसर्च के मुताबिक, 28 फीसदी मानसिक रोगी उपचार के लिए पहली बार में आयुर्वेद डॉक्टर्स के पास पहुंचते हैं. इसके साथ ही 12 फीसदी मनोरोगी ही मनोचिकित्सकों के बजाय एलोपैथी के दूसरे डॉक्टर्स के पास उपचार करने पहुंचते हैं. एक चौथाई से अधिक मानसिक रोगी अचेत अवस्था में लक्षण पहुंचने के बाद डॉक्टर्स के पास जाते हैं. इस बारे में एम्स के मनोचिकित्सक डॉ. जसवंत जांगड़ा का कहना है कि, देश में अभी भी मानसिक रोगों के बारे में जागरुकता की कमी है.
उपचार के हॉस्पिटल और चिकित्सक भी कम
लेंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में मानसिक रोगों पर काम करने वाले पेशेवरों (सरकारी और गैर-सरकारी) की 25312 है. प्रति एक लाख रोगियों पर मात्र .29 मनोचिकित्सक, .8 नर्स, .07 मनोवैज्ञानिक, .06 सोशल वर्कर, .03 व्यवासायिक चिकित्सक, .17 स्पीच थेरेपिस्ट उपलब्ध हैं. भारत में केवल 136 मानसिक रोग हॉस्पिटल है. इसके अलावा सिर्फ 389 आम हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक विभाग हैं.