आगरा.
बैंड, बाजा, बारात, डीजे व कार का स्टीरियो लोगों के कान की बत्ती गुल कर रहा है. क्योंकि, इनकी ध्वनि अमूमन 100 डेसीबल डीबी से अधिक होती है. जिससे कान की नर्व क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. इस वजह से ईएनटी विशेषज्ञों पर सबसे ज्यादा कान के मरीज पहुंच रहे हैं. आगरा में चल रही तीन दिवसीय यूपी एसोसिएशन ऑफ ओरहिनोलैरिंगोजिस्ट्स आफ इंडिया की यूपीएओआईकान-23 (UPAOICON-23 ) में विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे.

यूपीएओआईकान 23 में पहले दिन केजीएमयू लखनऊ से आए वरिष्ठ ईएनटी सर्जन डाॅ. अमित केसरी ने बताया कि, अच्छे खासे लोग तेज आवाज से अपने कान खराब कर रहे हैं. आज पब, क्लब कल्चर में भी तेज आवाजों का शोरगुल होता है. जो कानों के पर्दे पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. उन्होंने बताया कि, विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के मुताबिक, 100 डेसीबल की ध्वनि में अगर पांच मिनट से अधिक गुजरते हैं. इससे कान की नर्व क्षतिग्रस्त होती है. यह उस समय पता नहीं चलेगा. लेकिन, धीरे धीरे व्यक्ति श्रवण क्षमता को खोता जाएगा.
वरिष्ठ ईएनटी सर्जन डाॅ. अमित केसरी ने बताया कि, 90 डेसीबल से कम ध्वनि में कुछ देर रुका जा सकता है. 40 से 50 डेसीबल तक आप दो घंटे के आसपास ठहर सकते हैं. 70 डेसीबल पर खतरा शुरू हो जाता है. इससे ज्यादा पर नुकसान की आशंका है. लेकिन, बारात और पार्टियों में बजने वाले डीजे और मेलों में साउंड के बड़े बाक्स केंद्र सरकार की गाइडलाइन का उल्लंघन कर रहे हैं. इसकी वजह से 20 से 30 साल तक के युवा ज्यादा हैं. बता दें कि ट्रेन से निकलने वाली आवाज 90 और प्लेन की आवाज 110 डेसीबल तक की होती है.
यह भी रखें याद
- फोन पर ज्यादा काम करने वालों को अधिक दिक्कत
- लैंडलाइन फोन सबसे सुरक्षित लेकिन प्रचलन में नहीं
- हेलमेट में स्पीकर फोन पर बात करना भी खतरनाक
- मेलों में दिल के मरीजों को ले जाना ठीक नहीं रहेगा
इयरफोन और इयर बड्स खतरनाक
ईएनटी विशेषज्ञों का कहना है कि, कोविड के दौरान लोगों में आॅनलाइन काम करने की आदत पड़ चुकी है. विद्यार्थी से लेकर कामकाजी सभी अब कान में ईयरफोन या ईयरबर्ड लगाकर काम करते हैं. यह बेहद खतरनाक है. इससे कान के सुनने की क्षमता धीरे धीरे कम हो रही है. सबसे अच्छा है कि, मोबाइल को स्पीकर मोड पर सुनें. व्यक्तिगत बातें भी बिना ईयरफोन करें.
टेंपरेरी थ्रेसकाल शिफ्ट
ईएनटी विशेषज्ञों का कहना है कि, तेज आवाज कान पर किस तरह असर डालती हैं. इसे जरा सरल शब्दों में समझिए. जैसे ही तेज आवाज में जाते हैं तो हल्की ध्वनियां सुनाई नहीं देती हैं. कान को पास लाकर बात करनी पड़ती है. तेज आवाज से दूर होने पर धीमी आवाज फिर सुनाई देती है. इसे ही टेंपरेरी थ्रेसकाल शिफ्ट कहते हैं. यानि श्रवण शक्ति सामान्य अवस्था से बाहर चली जाती है.
कहां कितनी आवाज
फुसफुसाहट | 30 डेसीबल |
सामान्य बातचीत | 60 डेसीबल |
वाशिंग मशीन डिशवाशर | 70 डेसीबल |
ट्रेन की आवाज | 90 डेसीबल |
बाइक का इंजन | 95 डेसीबल |
डीजे और बैंड | 100 डेसीबल से अधिक |
प्लेन की आवाज | 110 डेसीबल |