आगरा.
वैस्कुलर सर्जरी ने कई जटिल ऑपरेशनों की सम्भावनाएं कम कर दी हैं. प्रोस्टेट की समस्या होने पर यदि आप अधिक उम्र या किसी परिस्थित के कारण ऑपरेशन नहीं कराना चाहते हैं तो वैस्कुलर सर्जरी इसमें आपकी मदद करती है. मीनोपॉज या किसी अन्य कारण से अधिक रक्तस्त्राव के कारण गर्भाशय निकलवाने की नौबत आ जाए तो भी वैस्कुलर सर्जरी के जरिए आप रक्तस्त्राव को बंद कर करके अपने गर्भाशय को बचा सकती हैं. इसी तरह घुटनों के प्रत्यारोपण की सम्भावना को भी कम किया जा सकता है. यानी अब हृदय के साथ आप प्रोस्टेट, गर्भाशय और घुटने की एंजियोग्राफी भी करा सकते हैं.

मेदान्ता हॉस्पीटल के डॉ. राजीव परख ने बताया कि, लगभग 60 से 70 वर्ष के बाद 70 प्रतिशत पुरुषों में प्रोस्टेट की समस्या होती है. ऐसे में यदि प्रोस्टेट में वैस्कुलर सर्जरी के जरिए तकलीफ देने वाले स्थान पर रक्त नलिका को बंद कर देने पर प्रोस्टेट को ब्लड सप्लाइ न मिलने से वह सिकुड जाता है. जिससे यूरिन पास करने में होने वाली तकलीफ खत्म हो जाती है. और ऑपरेट कराने से बचा जा सकता है. ऐसे ही अक्सर मीनोपॉज या किसी अन्य कारण से महिलाओं में काफी रक्तस्त्राव होने लगता है. कई बार विकल्प सिर्फ गर्भाशय को निकलवाना ही नजर आता है.
यदि महिला की उम्र कम है या फिर वह गर्भाशय निकलने पर मानसिक व शारीरिक समस्या होने के चलते गर्भाशय नहीं निकलवाना चाहती तो वैस्कुलर सर्जरी मदद करती है. ऐसी स्थित में भी गर्भाशय के रक्तस्त्राव होने वाले हिस्से की रक्त नलिकाओं को ब्लॉक कर दिया जाता है. जिससे रक्तस्त्राव रुकने के साथ गर्भाशय को निकालने से भी बचाया जा रहा है. डॉ. राजीव ने बताया कि, प्रोस्टेट और गर्भाशय निकालने और घुटने के प्रत्यारोपण में वैस्कुलर सर्जरी कोई विकल्प नहीं है. लेकिन, इस विधि से समस्या को कम कर गर्भाशय निकालने. प्रोस्टेट का ऑपरेशन और घुटने के प्रत्यारोपण कराने से बचा जा सकता है.

गर्भावस्था के बाद अवश्य कराएं अपनी रक्तनलिकाओं की जांच
पूना से आए डॉ. धनेश कामरेकर ने बताया कि, गर्भावस्था के बाद लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं में वैरीकोज वेन्स या रक्त नलिकाओं से सम्बंधिक अन्य समस्या देखने को मिलती है. गर्भावस्ता के दौरान गर्भ की नलिकाओं के फूलने के कारण पैरों से रक्त को ऊपर आने में परेशानी होती है. वैस्कुलर समस्या को लम्बे समय तक नजर अंदाज करने से गैंगरीन की समस्या बन सकती है.
पूना से आए डॉ. धनेश कामरेकर ने बताया कि, पैर की अंगुली से शुरु होकर कालापन पैरों में ऊपर तक पहुंचने लगता है. पैरों में दर्द तो सबको होता है. लेकिन, चलने पर पैरों में दर्द होना. मतलब धमनियों में ब्लाकेज और खड़े रहने पर पैरों में दर्द होना. मतलब, रक्त शिराओं में परेशानी का संकेत हो सकता है.
इस अवसर पर मुख्य रूप से आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. वीएस बेदी, सचिव डॉ. तपिश साहू, उपाध्यक्ष डॉ. संदीप अग्रवाल, प्रसीडेन्ट डॉ. पीसी गुप्ता, कोषाध्यक्ष डॉ. अपूर्व श्रीवास्तव, मायो क्लीनिक की डॉ. मंजू कालरा, यूके डान कैस्टर से डॉ. नन्दन हल्दीपुर, यूके से डॉ. रघु लक्ष्मी नारायण, मस्कट से डॉ. एडविन स्टीफन, डॉ. केआर सुरेश, डॉ. सात्विक, डॉ. आशुतोष पांडे समेत अन्श् उपस्थित रहे.
शरीर में पानी की कमी से भी सकती हैं नसों की समस्या
गर्मी के मौसम में डीहाईट्रेशन और उल्टी दस्त जैसी समस्या भी नसों की बीमारी का कारण बन सकता है. गंगाराम हास्पीटल के डॉ. संदीप अग्रवाल ने बताते हैं कि, अक्सर मई और जून में इस तरह के मरीज आते हैं. डीवीटी डीप वेन थ्रोम्बोसिस के बारे में बताते हुए कहा कि, त्वचा के नीचे चलने वाली नसों को सुपरफीशियल वेन कहते हैं. यह नसे फूल जाती हैं. जिससे ब्लड नीचे से ऊपर नहीं आ पाता. जिसे वेरीकोज वेन कहते हैं. 10 में से 6 से 7 महिलाओं को जीवनकाल में यह समस्या अवश्य होती है. समस्या को अनेदेखा करने पर नसे फट जाती हैं. या रक्त जम जाता है.
डॉक्टर के पास मरीज तब पहुंचता है. जब जख्म बन जाता है. पस पड़ जाता है. 25 वर्ष पहले काटकर ऑपरेशन किया जाता था. लेकिन, आज लेजर से इलाज सम्भव है. 80.90 प्रतिशत रक्त पैरों में डीप वेन लेकर जाती है. यदि डीप वेन में रक्त जम जाए यानि थ्रोम्बस डीप वेन थ्रोम्बोसिस गहराई वाली नस में खून के धक्के का जमना. यह खतरनाक हो सकता है. थक्का हदय से फेफड़ों में पहुंच सकता है. कभी कभी मरीज के मुंह से रक्त भी आने लगता है. अचानक पैर सूज कर मोटा, लाल गरम हो गया. यानी मरीज को डीवीटी है. कुछ मामलो में पैर की मूवमेंट कम हो जाता है. पैर की सिकाई व मालिश बिल्कुल नहीं करनी. सिकाई से त्वचा जल जाने से जख्म बन सकता है.